ये जींदगी तो कोई बद्दुआ लगे है मुझे
ये जींदगी तो कोई बद्दुआ लगे है मुझे
जो आंसुवों में कभी रात भीग जाती है
बहुत करीब वो आवाजे पा लगे है मुझे
मैं सो भी जाऊं तो क्या मेरी बंद आंखों में
तमाम रात कोई झांकता लगे है मुझे
मैं जब भी उसके खयाल में खो सा जाता हूं
वो खुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे
दबा के आई है सीने में कौन सी आहें
कुछ आज रंग तेरा सांवला लगे है मुझे
मैं सोंचता था कि लौटुंगा अजनबी की तरह
पर ये मेरा गांव तो पहचानता लगे हैं मुझे
न जाने वक्त की रफ्तार क्या दिखाती है
कभी कभी बड़ा खौफ सा लगे है मुझे
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद
हर एक शख़्स कोई सानेहा लगे है मुझे
अब एकाद कदम का हिसाब क्या रखें
अभी तलक तो वही फासला लगे है मुझे
(जां निसार अख़्तर)
सानेहा :- सदमा पहुंचाने वाला, तकलीफ देने वाला