Khoomar barabankavi shyari अकेले हैं वो और झूंझला रहे हैं



 

अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं


अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फरमा रहे हैं

ईलाही मेरे दोस्त हों खैरियत से
ये क्यों घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

बहुत ख़ुश हैं गुस्ताखियों पर हमारी
बजाहीर जो बरहम नजर आ रहे हैं

ये कैसी हवाएं तरक्की चली है
दिए तो दिए दिल बुझे जा रहे हैं

बहिश्ते तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूं
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
खूमार आप तो काफ़िर हुए जा रहे हैं

            (खूमार बाराबंकवी)


ईलाही :- खुदा, ईश्वर
गुस्ताखियां :- गलतियां
बजाहीर :- दिखने में
बरहम :- नाराज़, खफा
बहिश्ते तसव्वुर :- स्वर्ग की कल्पना, जन्नत का ख़्याल
मय :- शराब


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