अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं
मेरी याद से जंग फरमा रहे हैं
ईलाही मेरे दोस्त हों खैरियत से
ये क्यों घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
बहुत ख़ुश हैं गुस्ताखियों पर हमारी
बजाहीर जो बरहम नजर आ रहे हैं
ये कैसी हवाएं तरक्की चली है
दिए तो दिए दिल बुझे जा रहे हैं
बहिश्ते तसव्वुर के जलवे हैं मैं हूं
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा
खूमार आप तो काफ़िर हुए जा रहे हैं
(खूमार बाराबंकवी)
ईलाही :- खुदा, ईश्वर
गुस्ताखियां :- गलतियां
बजाहीर :- दिखने में
बरहम :- नाराज़, खफा
बहिश्ते तसव्वुर :- स्वर्ग की कल्पना, जन्नत का ख़्याल
मय :- शराब
हमसे भगा न करो दूर गिज़ालों की तरह.........
सुना हैं लोग उसे आँख भर के देखते हैं..........