Three best ghazal of Ahamad Faraz अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़लें

 Three best ghazal of Ahamad Faraz अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़लें





ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे


ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे

तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे


अपने ही साए से हर क़दम लरज1 जाता हूँ

रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे


कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले की तुझे

याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे


तेरे माथे की सिकन पहले भी देखी थी मगर

ये गिरह2 अबकी मेरे दिल में पड़ी हो जैसे


मंजिलें दूर भी हैं मंजिलें नज़दीक भी हैं

अपने ही पाँव में जंजीर पड़ी हो जैसे


आज दिल खोल के रोए हैं तो यूँ खुश हैं फ़राज़

चन्द लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे


 

1.लरज जाना :- कांप जाना या डर जाना

2. गिरह :- सिकन, गांठ

 



बेचैन उमंगों को बहला  चले जाना ..........



Aise chup hain ki ye manzil bhi kadi ho jaise


Aise chup hain ki ye manzil bhi kadi ho jaise

Tera milna bhi judai ki ghari ho jaise


Apne hi saye se har qadam laraz jata hu

Raste mein koi diwar khadi ho jaise


Kitne naadan hai tere bhoolne wale ki tujhe

Yaad karne ke liye umra padi ho jaise


Tere maathhe ki sikan pahle bhi dekhi thi magar

Ye girah abki mere dil mein padi ho jaise


Manzilein dur bhi hain, manzilein nazdeek bhi hain

Apne hi paanv mein janzir padi ho jaise


Aaj dil khol ke roye hain to yun khush hain faraz

Chand lamhon ki ye rahat badi ho jaise





रोग ऐसे भी गमे यार से लग जाते हैं


रोग ऐसे भी गमे यार से लग जाते हैं

दर से उठते हैं तो दीवार से लग जाते हैं


इश्क़ आगाज़1 में हल्की सी खलिश2 रखता है

बाद में सैकड़ों आज़ार3 से लग जाते हैं


पहले-पहले हवश इक आधी दुकाँ खोलती है

फिर तो बाज़ार के बाज़ार से लग जाते हैं


बेबसी भी कभी कुर्बत4 का सबब बनती है

रो ना पाएँ तो गले यार से लग जाते हैं


कतरने गम की जो गलियों में उड़ी फिरती हैं

घर में लाओ तो अम्बार से लग जाते हैं


आबल-आबल5 जब कर देती है दिल को फ़राज़

परदा इल्जाम जो इज़हार से लग जाते हैं

 

1. आगाज़ :- शुरुआत या आरंभ

2. खलिश :-  चुभन

3.आज़ार :- बीमारी

4.कुर्बत :- नजदीकीसमीपता,मिलन

5.आबल-आबल:- छालाफफोले

 

हमने चाहा तुम्हेंचाहने वालों की तरह....... 


Rog aise bhi game yaar se lag jate hain


Rog aise bhi game yaar se lag jate hain

Dar se uthhte hain to diwar se lag jate hain


Ishq aagaz me halki si khalish rakhta hai

Baad mein saikadon aazar se lag jate hain


Pahle-pahle hawash ek aadhi dukaan kholti hai

Fir to bazar ke bazar se lag jate hain


Bebasi bhi kabhi kurbat ka sabab banti hai

Ro na payein to gale yaar se lag jate hain


Katarne gam ki jo galiyon mein udi firti hain

Ghar mein le aawo to ambaar se lag jate hain


Aabal-aabal kar deti hai jab dil ko faraz

Parda ilzaam jo izhaar se lag jate hai






रंजिश ही सही दिल दुखाने के लिए आ


रंजिश ही सही दिल दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ


कुछ तो मेरे पिंदारे-मोब्बतह1 का भरम रख

तु भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ


पहले से मरासिम2 न सही फिर भी कभी तो

रस्मो-रहे-दुनिया3 ही निभाने के लिए आ


किस-किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम

तु मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ


एक उम्र से हूं लज्जते-गिरय4 से भी महरूम

राहते-जाँ5 मुझको रुलाने के लिए आ


अब तक दिल-ए-खुशफहम6 को तुझसे है उम्मीदें

ये आखिरी शम्मा भी जलाने के लिए आ

 

1.पिंदारे-मोहब्बत :- मोहब्बत का अभिमान

2.मरासिम :- सम्बंध

3.रस्मो-रहे-दुनिया :- दुनिया की रस्में

4. लज्जते-गिरय से महरूम होना :- रोने के सुख से वंचित होना

5. राहते-जाँ :- महबूब,दोस्त

6. दिल-ए-खुशफहम :- खुशमिजाज दिल


बड़ा वीरान मौसम हैकभी मिलने चले आवो...........


Ranjish hi sahi dil dukhane ke liye aa


Ranjish hi sahi dil dukhane ke liye aa  

Aa fir se mujhe chhod ke jane ke liye aa


Kuchh to mere pindare mohabbat ka bharam rakh

Tu bhi kabhi mujhko manane ke liye aa


Pahle se marasim na sahi fir bhi kabhi to

Rashmo-rahe-duniya hi nibhane ke liye aa


Kis-kis ko batayenge judai ka sabab ham

Tu mujhse khafa hai to zamane ke liye aa


Ek umra se hu lazzat-e-giray se bhi mahroom

Ae rahate jaan mujhko rulane ke liye aa


Ab tak dil-e-khushfaham ko tujhse hai ummidein

Ye aakhiri shamma bhi bujhane ke liye aa



बिछड़ के मुझसे तेरा जी लग भी गया तो क्या लगेगा

तु थक जायेगा मेरे गले से आ लगेगा..................  


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